राजाराम जाट | rajaram jat History

  • जन्म ➡️ 1670
  • मृत्यु ➡️ 1688
  • उत्तराधिकारी ➡️ चूड़ामन
  • पूर्वज ➡️ गोकुल सिंह
  • राजाराम जाट वो हिन्दू शेर हैं, जिसने अकबर की कब्र खोदकर अस्थियां जला डाली थी।

    भारत में औरंगज़ेब का शासन चल रहा था और हिन्दुओं का जीना मुश्किल हो गया था। औरंगज़ेब, जिसने अपने पिता को ही कैद कर लिया था, जिसने तख्त के लिए अपने भाइयॊं को ही मार दिया था वह भारत के हिन्दुओं को कैसे शांति से जीने दे सकता था? हिन्दुओं पर औरंगज़ेब के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। औरंगज़ेब से लोहा लेने एक वीर बहादुर जाट तैयार हो गया जिसका नाम था राजाराम जाट। राजाराम जाट, भज्जासिंह का पुत्र था और सिनसिनवार जाटों का सरदार था। वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था, वह एक साहसी सैनिक और विलक्षण राजनीतिज्ञ था। उसने बड़ी चतुराई से जाटों के दो प्रमुख क़बीलों-सिनसिनवारों और सोघरियों (सोघरवालों) को आपस में मिलाया।

    राजाराम ने सिनसिनवार जाटों का, रामकी चाहर की अध्यक्षता में, सोगरिया जाटों के साथ-साथ जिनके पास सोगर का किला था, संगठन किया। उसने बन्दूकों का संग्रह किया और जंगलों में कच्चे दुर्ग बनाकर छावनियां कायम कीं। सबसे मुख्य शिक्षा उसने विद्राहियों को यह दी कि वे अपने सेनानायकों की आज्ञापालन में त्रुटि न आने दें। उसने विश्रृंखलित जाति को संगठित करके आक्रमणकारी के साथ ही चतुर सैनिक बना दिया।

    जिस प्रकार मुगलों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा था उसी प्रकार राजाराम जाट उनके मकबरो और महलो को तोड़ते थे। राजाराम जाट के भय से मुगलों ने बाहर निकलना बन्द कर दिया था।

    राजाराम जाट की वीरता की बात औरंगज़ेब के कानों तक भी पहुंची। उसने तुरन्त कार्रवाई की और जाट- विद्रोह से निपटने के लिए अपने चाचा, ज़फ़रजंग को भेजा। राजाराम जाट ने उसको भी धूल चटाई। उसके बाद औरंगजेब ने युद्ध के लिए अपने बेटे शाहज़ादा आज़म को भेजा। लेकिन उसे वापस बुलाया और आज़म के पुत्र बीदरबख़्त को भेजा। बीदरबख़्त बालक था इसलिए ज़फ़रजंग को प्रधान सलाहकार बनाया। बार-बार के बदलावों से शाही फ़ौज में षड्यन्त्र होने लगे। राजाराम ने मौके का फ़ायदा उठाया, बीदरबख़्त के आगरा आने से पहले ही राजाराम जाट ने मुग़लों पर हमला कर दिया।

    सन् 1688, मार्च में राजाराम ने सिकंदरा में मुग़लों पर आक्रमण किया और 400 मुगल सैनिकों को काट दिया। कहते हैं की राजाराम जाट ने अकबर की कब्र को तोड़ कर उनकी अस्थियों को बाहर निकाला और जला कर राख कर दिया।

    राजाराम जाट एक शूर वीर नायक की तरह उभर आया और मुगलों को उसने धूल चटाई। 4 जुलाई 1688 को मुग़लों से युद्ध करते समय धोखे से उन पर मुगल सैनिक ने पीछे से वार किया और वो शहीद हो गए। राजाराम का सिर काटकर औरंगज़ेब के दरबार मे पेश किया गया और रामचहर सोघरिया को जिंदा पकड़कर आगरा ले जाया गया जहां उनका भी सिर कलम कर दिया गया।

    हमारी किताबें हमें इन शूर-वीर नायकों के बारे में नहीं बताती और ना ही कोई इन पर सिनेमा बनाता है। ऐसा करने से भारत की सेक्यूलरिस्म खतरे में आ जाती है। हिन्दु राजाओं को दहशतगर्द बताकर मुगल मतांदों को महानायक बताना सेक्युलरिस्म है। भारत के सच्चे इतिहास को छुपाकर झूठ फैलाकर वर्षों से लोगों को मूर्ख बनाया गया है। सत्य को चाहे लाख छुपाए लेकिन सत्य नहीं छुपता और एक न एक दिन उजागर होता ही है।

    जाट समाज मे 4 जुलाई को राजाराम जाट के बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।


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