लोहागढ़ दुर्ग ➡ भरतपुर
महाराजा सूरजमल द्वारा संस्थापित भरतपुर दुर्ग का निर्माण 1733 ई . में सौघर ( या सौगर ) के निकट प्रारम्भ हुआ तथा 8 वर्ष में बनकर तैयार हुआ ।
History of Lohagarh Fort in Hindi
पूर्व में यहाँ एक मिट्टी की गढी ( चौबुर्जा ) थी जिसे 1708 ई . में लुहिया गाँव के जाट खेमकरण द्वारा बनवाया गया था ।
लोहागढ़ दुर्ग के चारों ओर एक गहरी खाई हैं जिसमें मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया है । यह झील रूपारेल और बाणगंगा नदियों के संगम पर उनका जल को बाँध के रूप में रोककर बनाई गई हैं ।
लोहागढ़ दुर्ग के प्रवेश द्वार पर अष्ट धातु से निमित्त सुन्दर कलात्मक एवं अत्यधिक मजबूत दरवाजा लगा हुआ है जिसे तत्कालीन महाराजा जवाहरसिंह 1765 में दिल्ली में मुगलों से जीतने के बाद लाल किले से लाये थे ।
जनश्रुति के अनुसार यह द्वार चित्तौड़गढ़ दुर्ग से उठाकर अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली ले गया था । मुगलों पर विजय के उपलक्ष में दुर्ग में जवाहर बुर्ज ' का निर्माण करवाया । इस किले को न तो मुगल जीत सके न अंग्रेज ।
लोहागढ़ दुर्ग भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग हैं।
भरतपुर दुर्ग पर सबसे जबरदस्त व प्रभावी आक्रमण सन् 1805 ई . में अंग्रेजी सेना ने लॉर्ड लेक के नेतृत्व में किया था , जिसका कारण तत्कालीन भरतपुर महाराजा रणजीत सिंह द्वारा अंग्रेजों के शत्रु जसवंतराव होल्कर को भरतपुर में शरण देना था । 4 माह के जबरदस्त आक्रमण के बाद भी अंग्रेज सेना दुर्ग को नहीं जीत पाई , फलतः अंग्रेजों को महाराजा रणजीत सिंह से संधि करनी पड़ी तथा 17 अप्रैल , 1805 को अंग्रेजी सेना ने घेरा हटा लिया । भरतपुर में अंग्रेजी सेनानायक लॉर्ड लेक का मान मिट्टी में मिल गया । अंग्रेजों पर इस विजय के उपलक्ष में सन् 1806 में दुर्ग की ‘ फ़ितेह बुर्ज ' का निर्माण करवाया गया । इसलिए इस दुर्ग के बारे में निम्न उक्ति लोक मानस में प्रसिद्ध है |
दुर्ग भरतपुर अडिग जिनि ,
हिमगिरि की चट्टान । ।
सूरजमल के तेज को ,
अब लौ करत बखान । ।
इसके अलावा अंग्रेजों को पुन : लोहागढ़ दुर्ग की ओर मुँह न करने की सीख के साथ लोकमानस की यह ललकार कि ‘ रा हट जा रे , राज भरतपुर को खूब प्रसिद्ध रही । इस पराजय से अंग्रेज अफसरों का मनोबल भी गिरा । सर चाल्र्स मेटकाफ ने गवर्नर जनरल को पत्र में निम्न पंक्तियाँ लिखी - ‘ ब्रिटिश फौजों की सैनिक प्रतिष्ठा का अधिकांश हिस्सा भरतपुर केदुर्भाग्यपूर्ण घर में दब गया है । अंग्रेजों ने अपनी इस हार का बदला तब लिया जब महाराजा रणजीतसिंह को मृत्यपरांत भरतपुर राजघराने को आतरिक कलह का लाभ उठाकर अंग्रेजी सेना ने महाराजा दुर्जन राव के शासनकाल में लाड कोम्बरमेयर के नेतृत्व में 25 दिसम्बर , 1825 को विशाल सेना के साथ लोहागढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया एवं 18 जनवरी , 1826 को इसे अपने अधिकार में ले लिया ।
लोहागढ़ दुर्ग के प्रमुख महलों में महलखास , कोठी खास , किशोरी महल , दरबार खास आदि प्रमुख हैं । सिलह खाना , बिहारीजी एवं मोहनजी का मंदिर भी वहाँ स्थित हैं
History of Lohagarh Fort
कचहरी कलां
लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर में कचहरी कलां स्थित है । इस विशाल हाल का उपयोग ' दीवाने आम के रूप में किया जाता था ।
18 मार्च , सन् 1948 को मत्स्य संघ का उद्घाटन इसी दरबार हाल में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा किया गया था , जिसमें तत्कालीन चार रियासतों - भरतपुर , धौलपुर , करौली और अलवर का एकीकरण करके ' मत्स्य प्रदेश ' का गठन किया गया था ।
भरतपुर दुर्ग को राजस्थान की पूर्वी सीमा का प्रहरी ' कहा जाता है । यह दुर्ग दो विशाल प्राचीरों से सुरक्षित है । बाहरी प्राचीन चौड़ी हैं एवं मिट्टी की बनी है । अन्दर की प्राचीन पत्थर एवं । ईंटों से मजबूती से बनी हुई है । युद्ध के समय तोप आदि के गोले बाहरी मिट्टी को चौड़ी प्राचीर में ही धंस कर रह जाने के कारण आंतरिक प्राचीर एवं दुर्ग को नुकसान नहीं पहुँचा पाते थे।चारों ओर चौड़ी एवं गहरी पानी की खाई तथा दो मजबूत परकोटों के कारण यह दुर्ग विलक्षण सुरक्षा कवच से सुरक्षित है।
दुर्ग की 8 विशाल बुर्जे हैं , जिनके नाम हैं - जवाहर बुर्ज , फतेह बुर्ज , सिनसिनी बुर्ज , भैंसावाली बुर्ज , गोकुला बुर्ज , कालिका बुर्ज , बागरवाली बुर्ज व नवल सिंह बुर्ज । दुर्ग का उत्तरी प्रवेश द्वार अष्ट धातु दरवाजा व दक्षिणी प्रवेश द्वार लोहिया दरवाजा कहलाता है ।
विशेष :-
लोहे जैसी मज़बूती के कारण ही इस दुर्ग को 'लोहागढ़' या 'आयरन फ़ोर्ट' कहा गया।
Address
Lohagarh Fort
Gopalgarh, Bharatpur, Rajasthan 321001